भारत में वस्तु और सेवा कर (GST) 1 जुलाई, 2017 को लागू हुआ था, लेकिन लागू होने के 12 साल पहले से इस पर काम चल रहा था. राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन अधिनियम (FRBM) पर 'केलकर टास्क फोर्स' ने 2005 में केंद्र के स्तर के वैट (VAT) और राज्य स्तर के वैट (गुणवत्ता बढ़ाने पर लगने वाला टैक्स) की जगह सभी वस्तुओं और सेवाओं पर एक 'अम्ब्रेला टैक्स' की सिफारिश की थी, जिसके नीचे सभी प्रकार के अप्रत्यक्ष करों मसलन उत्पाद शुल्क, बिक्री कर, सेवा शुल्क, सीमा शुल्क इत्यादि को शामिल करना था. इस टास्क फोर्स की GST पर यह अनुशंसा अपने आप में ऐतिहासिक थी, क्योंकि इस सुधार से अप्रत्यक्ष करों की जटिल प्रणाली की जगह एक 'वन नेशन वन टैक्स' होने वाला था.
वर्तमान GST से पहले की इनडायरेक्ट टैक्स की व्यवस्था में केंद्र वस्तुओं के उत्पादन या विनिर्माण के स्तर पर कर लगाता था, जबकि राज्य वस्तुओं के बिक्री के स्तर पर कर लगाता था. वहीं सेवाओं पर कर केवल केंद्र ही लगा सकता था. GST लागू होने के बाद वस्तुओं और सेवाओं दोनों पर उत्पादन से वितरण तक केंद्र और राज्य दोनों कर लगाते हैं.
GST प्रणाली को उपभोक्ता के साथ साथ उत्पादक भी बेहतर और सरल मानते हैं. जिसके अंतर्गत लगभग सभी प्रकार की वस्तुओं और सेवाओं को पांच कर स्लैब (0, 5, 12, 18, 28 फीसदी) में बांट दिया गया है. GST एक एकीकृत प्रणाली होने के कारण कर भुगतान करने, ITC प्राप्त करने में आसानी हुई है और साथ में कर चोरी की संभावना भी कम रहती है. GST आने के बाद से भारतीय अर्थव्यवस्था ज्यादा व्यवस्थित हुई है और टैक्स कलेक्शन भी बढ़ा है.
GST लागू होने के बाद के पांच वर्षों का पुनरावलोकन किया जाये तो काफी हद तक GST ने अपने उद्देश्य को प्राप्त कर लिया है. हलांकि कुछ छिटपुट मुद्दों को अभी भी प्राप्त करना बाकी है. पुरानी कर व्यवस्था की तुलना में GST में करदाताओं की संख्या में काफी बढ़ोतरी हुई है. अप्रैल, 2022 तक GSTN में कुल 1 करोड़ 26 लाख करदाता पंजीकृत हैं. वहीं टैक्स कलेक्शन की बात की जाये तो रिकॉर्ड बढ़ोतरी हुई है. 2012 से अब तक टैक्स कलेक्शन में 27 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है. कुछ अपवाद 2010 की आर्थिक मंदी और कोविड महामारी को छोड़कर.
जीएसटी एक गंतव्य-आधारित कर है. जिसमें उस राज्य द्वारा टैक्स कलेक्ट किया जाता है, जहां वस्तु और सेवाएं बेची जाती हैं, न कि उस राज्य द्वारा जहां उत्पादन होता है. कुछ राज्य जो खनिज, कृषि जैसे वस्तुओं का उत्पादन करते हैं और जिन्हें अन्य राज्यों में भेज दिया जाता है, जिससे उनके टैक्स कलेक्शन का एक हिस्सा खो जाता है. ऐसे राज्य GST का विरोध भी करते रहे हैं.
GST लागू होने के बाद राज्यों को टैक्स कलेक्शन से होने वाले नुकसान की भरपायी के लिए केंद्र के द्वारा राज्यों को जीएसटी कॉम्पेनसेशन सेस देने का प्रावधान किया गया. यह कॉम्पेनसेशन आने वाले 5 वर्षों 2022 तक के लिये देना था. लेकिन वित्त वर्ष 2020 में महामारी और मंदी ने राज्यों की वित्तीय स्थिति को प्रभावित किया है, जिससे कई राज्यों ने 30 जून, 2022 की समय सीमा के बाद भी मुआवजे के भुगतान को बढ़ाने के लिए कहा है. जिन कारणों से केंद्र और राज्यों के बीच कुछ तनाव जरूर पैदा हुआ.
लेकिन GST पिछले पांच वर्षों में जिस तरह से काम किया है, उससे पता चलता है कि भविष्य की समस्याओं के समाधान खोजने में भी बहुत अधिक परेशानी नहीं होगी. साथ GST को अपने शुद्ध रूप में लाने के लिए सरकार को अभी और भी सुधार करने की आवश्यकता है. जिससे केंद्र और राज्यों सरकारों के बीच एक बेहतर सहकारी संघवाद की नींव मजबूत हो सके.
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