शेल कंपनियों को चलाने में चीनियों की करते हैं मदद!
चीनी कंपनियों से सांठ-गांठ को लेकर सैकड़ों चार्टर्ड अकाउंटेंट भारत सरकार के नजर पर चढ़े हुए हैं. इन पर शक है कि ये भारत स्थित चीनी शेल कंपनियों को चलाने में चीनियों की मदद कर रहे हैं और भारतीय कंपनी कानून-2013 का पालन ठीक से नही कर रहे हैं. इसलिए CAs के लिए कायदे कानून बनाने वाला संस्थान ICAI अब इन पर एक्शन लेने की तैयारी में है.
आगे बढ़ने से पहले हम शेल कंपनी के बारे में जान लेते हैं. दरअसल शेल कंपनी कंपनी अधिनियम के तहत पंजीकृत तो होते हैं, लेकिन वास्तविक लेनदेन नाममात्र या शून्य करते हैं. जो प्रायः कागजों पर दिखाते हैं और पैसे का भौतिक लेनदेन नहीं करते हैं. शेल कंपनी का मुख्य उद्देश्य मनी लॉन्ड्रिंग करना होता हैं. इन्हें मुखौटा कम्पनी या छद्म कम्पनी भी कह कहते हैं.
यहीं ICAI को समझ लेते हैं. इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड अकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया भारत का राष्ट्रीय लेखांकन निकाय है. इसकी स्थापना अकाउंटेंसी पेशे (CAs) को रेगुलेट करने के लिये की गई थी. यह भारत में वित्तीय लेखा-परीक्षा एवं अकाउंटेंसी पेशे के लाइसेंस को रेगुलेट करने वाला संस्थान है. यह भारत में लेखांकन मानकों पर राष्ट्रीय सलाहकार समिति (NACAS) के माध्यम से कंपनियों के लेखांकन की रूपरेखा तय करता है.
बहरहाल मुद्दे पर लौटते हैं. ICAI संस्थान के अध्यक्ष देबाशीष मित्रा ने हिन्दू बिजनेसलाइन से बात करते हुए कहा कि सरकार की तरफ से हमें CAs की एक लिस्ट भेजी गई है. जिन पर हम जल्द ही अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू करेंगे. साथ ही यह भी कहा कि कुछ मामलों में कंपनी के रजिस्ट्रार से भी हमें शिकायत मिली है. कई कंपनियां ऐसी भी हैं, जो भारतीय नियमों का पालन नही कर रही हैं और भारतीय CAs उनकी मदद कर रहे हैं. यह कई बार देखने को मिला है, कि चीनी कंपनियां पहले किसी भारतीय को डायरेक्टर बनाती हैं और बाद में चीनी नागरिक ही कंपनी के डायरेक्टर बन बैठते हैं. ऐसे कई शिकायतों की जांच कंपनी के रजिस्ट्रार पहले से भी कर रहे हैं.
इन CAs पर तत्काल एक्शन को लेकर जब देबाशीष मित्रा से सवाल किया गया तो उन्होंने कहा कि संस्थान को ऐसी शिकायतें देश भर से मिल रही हैं. जिनमें चीनी कंपनियों के साथ भारतीय CAs के गठजोड़ हैं. इन शिकायतों को चार्टर्ड एकाउंटेंट्स (पेशेवर और अन्य कदाचार और मामलों के आचरण की जांच की प्रक्रिया) नियम-2007, के संदर्भ में देखा जा रहा है. अभी विस्तृत जांच किया जाना बाकी है कि कितना बड़ा अपराध है, कितने लोग शामिल हैं, यह तय होना भी अभी बाकी है. इसलिए इस पर अभी कोई टिप्पणी करना जल्दबाजी होगी.
बिजनेसलाइन के सूत्रों के अनुसार कंपनियों के सचिवों पर भी उनकी अनियमितता की निगरानी की जा रही है. इसलिए कॉरपोरेट मामलों का मंत्रालय कंपनी सचिवों पर भी नजर बनाए हुए है और सचिवों का ब्यौरा भारतीय कंपनी सचिवों के संस्थान (ICSI) को भेज दिया गया है. इन सब के बीच, कंपनी के कानून विशेषज्ञों ने यह महसूस किया कि रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज (ROCs) द्वारा निभाई गई भूमिका की समीक्षा करने के लिए भी एक व्यवस्थित तंत्र होना चाहिए. जिससे आसानी से पता चल सके कि कैसे विदेशी नागरिक निदेशक के पद पर बैठ जाते हैं.
यहीं समझ लेते हैं रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज क्या है, दरअसल ये किसी नए कंपनी के पंजीकरण, कंपनी की मौजूदा स्थिति में परिवर्तन को देखते हैं. यह उनके साथ पंजीकृत सभी कंपनियों से संबंधित सभी रिकॉर्ड रखता है.
आपको बता दें कि इसी साल अप्रैल में, केंद्र ने संबंधित संस्थानों द्वारा दोषी CAs और कंपनियों के सचिव (CS) की अधिक जवाबदेही तय करने और अनुशासनात्मक सुधार लाने के लिए तीन पेशेवर संस्थानों, चार्टर्ड एकाउंटेंट्स, कंपनी सचिवों और कॉस्ट अकाउंटेंट को नियमित करने वाले कानूनों में संशोधन किया था.
साथ ही सरकार ने हाल के वर्षों में भारत के पड़ोसी देशों से आने वाले प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) को कम करने के लिए सख्त नियमों का पालन कर रही है. जिसका मुख्य मकसद भारत में आने वाले चीनी निवेश पर अंकुश लगाना है. ध्यान देने वाली बात यह है कि साल 2020 में FDI की नीति में बदलाव किया गया था. जिससे कि भारत से सीमा साझा करने करने वाले देशों से आने वाले निवेश पर सरकार नजर रख सके. जिसका प्रमुख उद्देश्य चीनी कंपनियों द्वारा भारतीय कंपनियों को हथियाने से रोका जा सके.
साथ ही इस साल 1 जून को सरकार ने पड़ोसी देशों के निवेश को कम करने के लिए यह निर्धारित किया कि ऐसे पड़ोसी देशों के नागरिकों को भारत मे कंपनी के डायरेक्टर बनने से पहले गृह मंत्रालय से मंजूरी लेनी होगी. इन कपनियों पर एक और शिकंजा कसने के लिए इनके लिए FEMA नियमों का पालन करना भी अनिवार्य बनाया गया है.
उपरोक्त रोकथाम के बावजूद भारत और चीन के बीच व्यापार काफी ज्यादा $125 बिलियन का रहा है. लेकिन सरकारी प्रतिबंधों में वृद्धि के कारण चीन से भारत में निवेश का आना पिछले दो वर्षों में कम हो गया है.
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